वैसे तो बारह महीने के एक वर्ष होते हैं, पर वास्तविक व्यवहार में मैं दस महीने ही मानता हूँ. दिसम्बर तो ऐसे ही रोते-गाते, ऐसा लगता हैं कोई महबूब की विदाई हैं उस गम में कब गुजर जाता हैं पता ही नहीं चलता. बचपन में यही दिसम्बर कितना खुश कर जाता था, की नया वर्ष आ रहा हैं.....पर अब तो बेवजह उदासी आ जाती हैं दिसम्बर महीने में. यही वो वर्ष का महीना होता हैं जब हम जनवरी में लिए गए वादों का विश्लेषण करते रहते हैं और ऐसा होना शत-प्रतिशत संभावित हैं की जो आप चाहेंगे वो पुर्णतः पूरा होगा नहीं. लेकिन हमारा दिल इस तर्क के तरफ ध्यान ही नहीं देता. अहा ! जनवरी मेरी जान......ठीक कॉलेज के उस क्रश जैसे हैं जिसके चले जाने का दुःख तब होता हैं जब वो किसी और के बाहों में हो, यानी जब ये जनवरी का महिना समाप्त हो जाता हैं तब हम भ्रम से बाहर आते है की अरे ये नया साल तो शुरू ह...