मेरे गाँव का प्रवेश द्वार मैं हूँ तो गाँव का ही, पर बचपन से घरवालों ने अपने पूर्वधारणा के वजह से मुझे गाँव के माहौल और समाज से अलग रखने की कोशिश की । इसके वजह से मैंने गाँव में मस्ती तो खूब की पर गाँव की समस्या को उतनी गहराई से नहीं समझ पाया। इसका कारण भी यही है कि लोग भगत सिंह को पसंद तो करते है पर अपना बेटा भगत सिंह बने ऐसा सपने में भी नही सोचते ,शायद उनकी अपनी असुरक्षा की भावना ऐसा कराती हो । इसके वजह से मैं अपने गाँव के समाज में मिल नहीं पाया और मुझे सबसे बुरा जो लगता है कि गाँव के बुजुर्गों के पैर तो खूब छुए है मैंने, पर उनके साथ निश्चिन्तता से बैठ कर दो बातें न कर पाने का मलाल हमेशा रहने वाला है। अब जब मैं गाँव जाता हूँ तो लोग मेरे साथ ऐसा बर्ताव करते है कि मैं चाह कर भी अब मिल नहीं पाता हूँ, मेरे साथ घुसपैठिये जैसे व्यवहार करते है मेरे अपने गाँव के लोग ।...