बचपन में मन लगाने के लिए रेडियो सुनते सुनते कब इससे इश्क हो गया पता ही नहीं चला, ऐसा शायद ट्रू लव वाले केस में होता हैं शायद. आपको प्यार करने की कोशिश नहीं करनी होती, बस होते चला जाता हैं. और उसमें जब रेडियो ऑन करते ही....एक ख़ास किस्म का म्यूजिक आता फिर आती वो आवाज," ये आकाशवाणी का दिल्ली केंद्र हैं, कुछ देर में आप सुगम संगीत सुनेंगे ". बस इतना बोलते ही पूरा दिल- दिमाग ध्यान के मुद्रा में आ जाता और वो पुरे एकाध घंटे मानो यूँ लगता की महबूबा के पास बैठें हो. भाइ साब एक-एक गाने पर सपने देखते थे हम ,उस रेडियो और अपनी प्यारी से डायरी के साथ. जब बज उठता की," दिल क्या करे जब किसी से प्यार हो जाए" फिर तो ऐसा लगता की मानो हम इस दुनिया में हैं ही नहीं......ऐसे दुनिया में हैं जहाँ नीचे सफ़ेद तिलस्मी कुहरे में कोई तो हैं जिसका हाथ थामें बस आगे बढ़ते जा रहे हैं. किशोर कुमार के इतने सुगम गाने, की बचपन का अनुभवहीन दिल-दिमाग भी आसानी से उसको महसूस करते हुए कल्पनालोक में गोते लगाते उन खुशियों को, दुःख को, दर्द को...मह