बचपन में मन लगाने के लिए रेडियो सुनते सुनते कब इससे इश्क हो गया पता ही नहीं चला, ऐसा शायद ट्रू लव वाले केस में होता हैं शायद. आपको प्यार करने की कोशिश नहीं करनी होती, बस होते चला जाता हैं. और उसमें जब रेडियो ऑन करते ही....एक ख़ास किस्म का म्यूजिक आता फिर आती वो आवाज," ये आकाशवाणी का दिल्ली केंद्र हैं, कुछ देर में आप सुगम संगीत सुनेंगे ". बस इतना बोलते ही पूरा दिल- दिमाग ध्यान के मुद्रा में आ जाता और वो पुरे एकाध घंटे मानो यूँ लगता की महबूबा के पास बैठें हो. भाइ साब एक-एक गाने पर सपने देखते थे हम ,उस रेडियो और अपनी प्यारी से डायरी के साथ. जब बज उठता की," दिल क्या करे जब किसी से प्यार हो जाए" फिर तो ऐसा लगता की मानो हम इस दुनिया में हैं ही नहीं......ऐसे दुनिया में हैं जहाँ नीचे सफ़ेद तिलस्मी कुहरे में कोई तो हैं जिसका हाथ थामें बस आगे बढ़ते जा रहे हैं. किशोर कुमार के इतने सुगम गाने, की बचपन का अनुभवहीन दिल-दिमाग भी आसानी से उसको महसूस करते हुए कल्पनालोक में गोते लगाते उन खुशियों को, दुःख को, दर्द को...महसूस कर उठता. उनके गानों से हमेशा हिम्मत मिलती थी ,अभी भी मिलती हैं लेकिन आजकल गाने सुनते-सुनते दिल दिमाग गाने से तुरंत हट कर दुसरे चीजों में उलझ जाते हैं और फिर गाने का महत्व कुछ रह ही नहीं जाता. एक उलझन को अब नहीं समझ पाता की प्यार मुझे किशोर कुमार से था या रेडियो से? क्योंकि जब रेडियो और किशोर कुमार का मिलन होता हैं तभी दोनों अच्छे और प्यारे लगते हैं. किशोर कुमार के गाने आज भी सुनता हूँ लेकिन जैसे सबका माध्यम बदल कर स्मार्टफ़ोन हो गया, ठीक वही मेरे साथ हुआ. लेकिन इस माध्यम से किशोर कुमार के गाने में वो फील नहीं आता. या शायद बचपन के उस रेडियो से जुड़े अपने तार को स्मार्टफ़ोन से कनेक्ट नहीं कर पाता हूँ. क्या हसीं दौर था बचपन का....शायद सबका ऐसा ही रहता हैं. स्कूल के दोस्त, घर में सबका प्यार, दीदी का प्यार, छोटी बहनों को बड़ा होते देखना, माँ से हमेशा जबरदस्ती खाना खाना और कभी कभी नहीं खाने पर पीटना, पापा से डरना , माँ से एक भाई का जिद करना, घर का खाना, रेडियो पर गाने, बचपन के एकमात्र दोस्त के साथ गाँव के खेतों में, नदीं के किनारे घूमना और पुरे जीवन के बारे में सपने बुनना, दोपहर में चोरी से साइकिल लेकर चलाना सीखना, गिरना और चोटें खाते रहना और एकमात्र साइकिल के लिए अपने छोटे भाई से लड़ते रहना, उससे लड़ना और हारना. इन सब चीजों से कितना प्यार हैं आज समझ आता हैं. दोपहर में स्कूल से फ्री होकर घर आते तो जबरन मां खाना खिलाती फिर अपने प्यारे से रेडियो का खोज शुरू होता और उसके साथ अपनी छोटी से प्यारी सी डायरी होती हैं, शुक्र है की इनदोनों का साथ अब तक हैं और हमेशा रहेगा. क्योंकि ये दोनों मेरे जीवन के बहुत अजीज अंग रहे हैं और उलझन के वक़्त इनदोनो ने हमेशा राह दिखाई है. ये सब बहुत प्यारे रहें हैं, क्योंकि इसमें कुछ कोशिश नहीं करना पड़ता था, सब बस होते चला जाता था और आज का दौर हैं की जितना जिसके बारे में बचाने की कोशिश करों वो चीजें भागने लगती हैं. लेकिन जीवन के इतने झंझावातों के बाद भी और भविष्य में आने वाले झंझावातों के बाद भी हमारा, रेडियो और किशोर कुमार का प्यार अमर रहेगा.
इनके एक-एक गानें में एक अलग दर्शन मिलता रहा हैं....."मुसाफिर हूँ यारों " जैसे गाने जीवन जीने का दर्शन देते रहे हैं. अपने कमजोरी में, गम में और खुशियों में मैंने हमेशा किशोर कुमार को पुकारा हैं और इन्होने हमेशा मेरा साथ दिया हैं. बचपन में जब रेडियो के लिए दीदी से मैं झगड़ते रहता तो मन में एक कशिश होती की केवल एक हॉलनुमा रूम होता, उसमें कोने में एक कुर्सी-टेबल रहें, एक लैंप रहें, मेरी प्यारी रेडियो रहती और उसपर नॉन-स्टॉप "सुगम संगीत" और साथ में मेरी प्यारी डायरी. बचपन में बस इतनी सी ही ख्वाहिश थी. यहीं मेरा पहला सच्चा प्यार था. और आज जब वैसा ही सुरतहाल हैं तो वैसा माहौल बनाकर फिर उन्हीं यादों को एक डायरी का ही रूप दे रहा हूँ. इन पलों को सम्पूर्णता में नहीं महसूस कर पा रहा हूँ. कोशिश करते ही, कभी जीवन की अनिश्चिततावों तो कभी किसी नॉन-एग्जिस्टेंस समस्याएं ध्यान में आती हैं और फिर ध्यान को चुरा ले जाती हैं इस वर्तमान से. बचपन में जब हाई स्कूल में सेकंड डिविजन आया तो लोगों के अनुसार मेरा जीवन के दिशा का निर्णय हो गया, लेकिन किशोर कुमार के गाने और उस आसान से लिरिक्स के पीछे छिपे दर्शन, कडवे पल को जीवन का ही एक अहम् हिस्सा होने का सीख दे गए. जो आजतक अवचेतन मस्तिष्क में ऐसा बसा हैं की कोई दुःख...वैसा दुःख नहीं लगता और सुख वैसे ख़ुशी नहीं देते. हाँ, ये अलग बात हैं की जब-जब सामाजिक बनने का जबरन कोशिश करूँ तो दुखी भी होता हूँ और लोगों से तुलना करके खुश भी होता हूँ. लेकिन इनकी उम्र ज्यादा नहीं होती. क्योंकि समय कहाँ ठहरता हैं भला, जो सुख-दुःख ठहरेंगें. जब जब मैंने अपने मन की आवाज को दबा कर लोगों की बात सुनी हैं तो निराशा ही हाथ लगीं हैं. लेकिन शायद ये कहना की अब पर्याप्त अनुभव हो चूका हैं की जीवन को दिशानिर्देश खुद से दे सकें, ये भी अनुभवहीनता ही होगी. क्योंकि मरते दम तक शायद हम जीवों को गलती कर-कर के खुद से सीख लेने के लिए अभिशप्त बनाया हैं भगवन ने. उनके एक एक गाने पर कोई लिखने बैठे तो शायद पूरी उम्र ही खप जाए, उन गानों को लिखने वालों को भी मेरा ढेर सारा छिपा हुआ प्यार मिलता रहा हैं, लेकिन गाने वाले किशोर कुमार हमेशा जैसे जीवन के अंधेरों में "टोर्च" बनकर सामने आये हैं. किशोर दा आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपने हमें एकसाथ खुश रहना और दुख को महसूसने लायक बनाया. आज इनेक जन्मदिवस पर मेरे प्रिय किशोर कुमार को ढेर सारा प्यार और उनके मौजूदगी का अहसास कराने के लिए संगीत माध्यम को ढेर सारा प्यार और स्नेह. लॉन्ग लाइव इंडियन म्यूजिक !! लव लव !!