[ माँ अपने 20's में ]
मेरे माँ की ये एकमात्र ऐसी तस्वीर है मेरे पास, जो मुझे सोचने के लिए मजबूर करती है कि कैसा रहा होगा माँ का बचपन या माँ का शुरुआती जीवन....हमेशा सोचता हूँ, और सोचकर हमेशा एक मीठी से गुदगुदाहट से मेरा मन खुश हो उठता है. कभी चेहरे पर एक मासूमियत ओढ़े शैतान बच्ची सी लगती है माँ, तो कभी अपने बचपन में ही माँ के खो देने का दुख को छिपाते हुए मुस्कुराते दिखती है माँ । बहुत कोशिश करता हूँ माँ से उसका बचपन जानने के लिए, लेकिन कभी हँस के टाल देती है, या मैं ही ज्यादा दबाव नहीं बना पाता, लेकिन इस तस्वीर को देखते ही माँ के बचपन के बारे में जानने की उत्कंठा तीव्र हो उठती है. अब तो ऐसे हालात है, माँ और पापा की तबीयत भी अच्छी नहीं रहती और मुझे भी उतना वक़्त नहीं होता कि घर ज्यादा दिन रह पाऊं और पहले जैसे इनके साथ समय बिता पाऊं, अब तो जाते है घर पर तो दिमाग काम पर लग जाता है, और काम पर आने के बाद दिमाग घर पर, शायद ये चलता रहेगा. ओह्ह मैं फिर कहाँ शुरू हो गया....हाँ तो मैं सोच रहा हूँ मेरी प्यारी सी खूबसूरत माँ का बचपन कैसा रहा होगा........, माँ के विचार कैसे रहे होंगे....अभी तो माँ को हमलोगों के लालन पालन, पापा के स्वास्थ्य और परिवार के जिम्मेदारियों ने इतना बदल दिया होगा कि बचपन के विचार खत्म तो नहीं पर इन सबके बीच दब-कुचल गए होंगे, उन विचारों को जानने का जी करता है. माँ से , माँ को जानने वालों से पूछने का जी होता है.....
माँ के बारे में जितना कुछ भी अब तक लिखा गया है वो दुनिया के एक माँ के लिए भी कम है, माँ का स्नेह, प्यार और ममत्व को शब्दों में बांध पाना असंभव और चुका पाना तो शायद ईश्वर के भी बस की बात नहीं. खैर मेरी क्षमता भी नहीं. मैं तो अपने माँ के बचपन और शुरुआती जीवन को वर्तमान के आईने और अपने समझ से बस टटोल कर थोड़ा ही सही काल्पनिक रूप से माँ के बचपन में मैं भी थोड़ा माँ के साथ जीना चाहता हूं. मेरी का माँ का नाम रेखा सिंह है, नाम जैसे ही मेरी बेचारी माँ का शरीर भी है एक सीधी रेेेखा जैसे दुबली पतली काया है, जबसे हमने होश पाया है, तबसे माँ को ऐसे ही पाया है. कभी सोचता हूँ जैसे हमारे सपने है, कुछ कर दिखाने, दुनिया को घूम लेने का ऐसे कुछ मिलते जुलते माँ के भी सपने जरुर रहे होंगे. लेकिन सपने देखने का हक़ शायद उन्हें ही ज्यादा मिल पाता है जिनका बचपन सामान्य हो, मेरी माँ ने अभी ठीक से होश भी नहीं संभाला था की मेरी नानी चल बसी थी. माँ के प्यार से मरहूम जीवन का तो मुझसे कल्पना मात्र करना भी असंभव लगता है, पर मेरी माँ ने उस जीवन को पता नहीं किन दुखों और तकलीफों के साथ या शायद अपने भाई-बहनों के साथ खुश हो कर जिया...ये तो माँ के अंतर्मन के आलावा कोई नहीं जान सकता. कभी सोचता हूँ अमर मामा से उनके इस बहन के बारे में बात करूं लेकिन उनके भी अपने दुःख है, ये जानकार अपने माँ के नोस्तालिजिया के कहानी को मामा से पूछने का हिम्मत चला जाता है. मेरी माँ अभी जैसे दुःख -तकलीफ में एक चट्टान जैसे मजबूत रहती है इससे मुझे ये अहसास तो होता है की माँ का बचपन उतना आसान नहीं रहा होगा, जितना हमने पाया है. मुझे जो कुछ भी मिला है, या जो मै हूँ, या बनूँगा वो केवल माँ का अक्श मात्र है.....मेरे विचार, सोच, विवेक, संतोष सबकुछ मुझे मेरी माँ से ही मिला है. मुझे अपने हर जन्म में यही माँ मिले मै भगवन से यही प्रार्थना करते रहता हूँ. कभी-कभी मै खुशफहमी में रहता था, की मैं अपने घर के लोगों के संकीर्ण सोच से अलग हूँ इसमें मेरा खुद का योगदान है पर मेरे माता पिता भी मेरे से ज्यादा खुले विचारों के है , इसे जानने में समय लगा पर अब समझ आ गया की मेरा सब कुछ मेरे जन्मदात्री का ही अक्श है. मुझे लगता है और जैसा माँ बताती है की माँ का ज्यादा समय कही एक जगह नहीं गुजरा है, शादी से पहले हमेशा घूमते रही है माँ.....और जैसा मैंने सुना है या समझा है उससे यही पता चला है की घुमने से सोच का, विवेक का और विचार का व्यापक विस्तार होता है. शायद ये घुमने और विचार का विस्तार माँ की ही देन है.
माँ के बचपन में उनकी सहेलियां, बहनें, भाई ....और बहुत लोग रहे है, जिन्होंने माँ के जीवन को आकार दिया है. कभी कभी शून्य में देखते हुए ,माँ के चेहरे को कल्पना कर के सोचता हूँ की माँ बचपन में एक नटखट बच्ची रही होगी या धीर-गंभीर. इसका अंदाजा आज उस बच्ची को देखकर लगाना असंभव लगता है. पर कभी कभी माँ शरमाती है तो लगता है की इन सबका मिश्रण से भरा रहा होगा माँ का बचपन. गाँव में रही है माँ तो सहेलियों के साथ मस्ती भी करी होगी माँ, पेड़ों पर चढ़ कच्चे आम-अमरुद-इमली-जामुन हमलोगों जैसे जरुर ही तोड़े होंगे, और जितना जीवन में मिला है माँ ने उससे हमेशा संतोष रखा है. हमेशा सही रास्ते पर चलने की नसीहत दी है माँ ने. माँ के डांट, लाड और प्यार ने मेरे जीवन की दिशा को सही दिशा में बनाये रखा है, चाहे अभी सफलता हाथ नहीं लगी है..परन्तु माँ के अनुरुप मैंने एक अच्छा इन्सान बनने की दिशा में अपना शत प्रतिशत देने का कोशिश किया है और मरते दम तक करते रहूँगा. माँ के साथ बड़ा होते गया हूँ मैं, जब मैंने होश पाई उस समय माँ के चेहरे, बातों, को याद करने की कोशिश करता हूँ पर कुछ भी याद नहीं आता .... बस कुछ भूली बिसरी यादें, कच्ची पक्की सी याद आती है, जैसे भिलाई के मेरे जीवन के पहले विद्यालय सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में माँ के द्वारा रिक्से से स्कूल छोड़ना और वापिस ले जाना. विशेषकर जब मैं स्कूल से छुट्टी के समय निकलता तो माँ का गेट पर अचानक से दिखाई दे जाना, भिलाई के रेंटेड कमरे में स्टोरेज टैंक के पानी से कपडा या बर्तन धुलना, या कभी कहीं घुमने गये उसकी धुंधली यादें....जब याद आती है तो कुछ ज्यादा संजीदा कर जाती है क्योंकि उन पलों को रिवाइंड कर दुबारा अब जी पाना तो संभव नहीं है. इसलिए भगवान् से हमेशा प्रार्थना करते रहता हूँ इन्हीं माँ पिता के साथ हर जन्म में जन्म लूँ ताकि इस जीवन को बार बार जीने का मौका मिल सके. कई बार इन्सान हारने लगता है, ऐसा दौर मेरे जीवन में भी आया...और हर बार मुझे माँ का चेहरा ही दिखा और आगे जीने की प्रेरणा मिलती रही. वाकई भगवान् अपने प्रतिनिधि के रूप में ही माँ को भेजता है. शायद सभी की माँ ही इतनी स्पेशल रहती होंगी. कई बार जी चाहता है की माँ से गले लग के खूब रोऊँ, माँ के गोद में सर रख के सो जाऊं पर शायद अब बड़े हो जाने का यही खामियाजा है की समाज और परिवार के नजर में खुद को एक कठोर मर्द दिखाने के चक्कर में सब कुछ गलत होने लग जाता है. माँ के साथ बहुत बातें करनी है , बहुत समय साथ जीना है , बहुत घूमना है. काश की सबकुछ आसान होता. माँ जैसे अंदर से है उसको वैसे ही समझना है, उसके अधूरे सपनों को जानना है. मेरी माँ मेरे लिए क्या मायने रखती है शायद ये भगवान और माँ के अलावा शायद ही कोई समझ पाए.
नोट : लिखने की प्रेरणा मुझे अभी देखे एक माराठी फिल्म -"आम्ही दोग्ची" के देखने से मिली.
समय: 2:40 AM , 27-03-2021