आँखों में आंसुओं का बाढ़ सा आ गया है 'आँखों देखी' देखने के बाद, बहुत ही जबरदस्त अभिनय है संजय मिश्रा जी का इस फिल्म में साथ ही अपने अनुभवों से रजत कपूर ने फ़िल्म में जान डाल दी है। इस फिल्म में संजय मिश्रा का किरदार निर्णय लेता है कि जो कुछ भी अनुभव करेंगे उसे ही सच मानेंगे इसी के घटनाक्रम पर आधारित कहानी है। इस फिल्म को जरूर देखा जाना चाहिए यदि आप जीवन के उलझनों में उलझ कर रिश्तों को उलझाते जा रहे है या यदि आप जीवन के यथार्थ को सामान्य तरीके से जीना चाहते है । इसमें बहुत से ऐसे वाक्य मिश्राजी ने बोला है जो हमारे निजी जिंदगियों में आये दिन घटती है । एक जगह पर अपने दोस्तों के साथ बोलते है कि ' हाँ मैं कुएं का मेढक हूँ पर मैं अपने कुएं को बहुत अच्छे से जानता हूँ' कितना सुन्दर और साधारण सा लगने वाला वाक्य है पर इसकी ताकत बहुत बड़ी और आसाधारण है। हम खुद अनुभव करते है कि जीवन में एक दायरे से निकलने में अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार रहते है पर वर्तमान दायरे की अनुभूति नहीं करते है, अगर करते हैं तो सच्ची ख़ुशी वही मिलेगी अगर मेरे अपने अनुभव की बात हो तो, वहीँ अगर फिल्म के मुख्य किरदार के भाषा में कहें तो 'ये मेरा अपना सच है, मेरा अपने साइज का चप्पल है आपके पैर में नहीं आएगा, आपका अपना सच होगा, सबका अपना सच होता है दूसरे के सच को अपनाने से आप आप नहीं रहेंगे ना ही वही रहेंगे' । मेरा अपना अनुभव है कि मुझे ख़ुशी मिलती है जब मैं प्रकृति के नजदीक (बहुत नजदीक) रहूं एक तरह से कहूं तो उसमें समाहित हो जाने का जी करता है, एक हो जाने का जी करता है। शायद ये सब कुछ मेरे पूर्वजों के अनुभव का योग हो, या कुछ और पर ये अगर जीवन को बारीक निगाह से देखें तो हम क्या पातें है कि ये एक मात्र अनुभव की पोटली है क्योंकि हमने अनुभव किया है कि कई कार्य किसी व्यक्ति के लिए गलत है तो बहुतों के लिए बिलकुल सही, इतना विपरीत ध्रुवी लोग कैसे हो सकते है यदि चीजें एक ही हैं तो । हम अपने अनुभवों को ही किसी चीज को जज करने का चेकलिस्ट समझते है। लेकिन आजकल अनुभव कम और बाहरी हस्तक्षेप ज्यादा प्रभावित करते है, बाहरी हस्तक्षेप यानी जब हम चीजों को अपने अनुभव से ना सकझकर दूसरों के आँखों-कानों- मुँह पर विश्वाश कर लें इसमें हमारे दोस्त, मीडिया और सुचना के कई माध्यम आते है। कल हम अपने एक मित्र से बात कर रहे थे तभी उनसे बात के क्रम में प्रिंट मीडिया की बात उठी तो पूरा लबोलुवाब यही निकला की आज यदि हमारा विचार मीडिया के आधार पर है तो ये नकली विचार है। हमें चाहिए की हम केवल सूचनाएं प्राप्त करें और यदि अपने विजय अग्रवाल सर के शब्द में कहें तो सूचनाएं प्राप्त करने के बाद उसे खुद पकाएं। पकी-पकाईं चीजें अच्छी तो लगेंगी पर कोई अनुभव नहीं जुड़ पायेगा , इसी के सम्बन्ध में फिल्म का मुख्य किरदार का कहना था 'कितना सुन्दर जीवन? कितना सुख?, कितने सारे अनुभव?सब अनुभवों को जोड़ कर बना मेरा जीवन........ सब अनुभवों का योग मैं.' इस फिल्म में रिश्ते को भी ध्यान में रखा है हम भी फिल्म में जो दो भाई उनके जैसे कभी कभी रिश्ते निभाने लगते है अहसास दोनों को होता है कि गलत हो रहा है पर कोई पहल नहीं करता और इसी 'पहले आप पहले आप 'में रिश्तों के धागे कमजोर पड़ने लगते है और अचानक एक दिन ये धागा टूट जाता है और हमारे पास पश्चाताप के अलावे कुछ नहीं होता । हमें अपने रिश्तों के धागों के रेंफोर्समेंट का पहल खुद करना होगा यहीं दोनों के हित में भी होगा । ये फिल्म 1 घंटे और 48 मिनट में मनोरंजन के साथ ही बहुत कुछ सीखा कर भी चली जाती है वहीँ अगर रुलाने वाले मटेरियल की बात करु तो अंतिम दृश्य में जब बेटी के विदाई संजय मिश्रा के किरदार ने की तो मुझे केवल दीदी दिखाई दे रही थी और मेरी दोनो छोटी बहनें, कितना बुरा अनुभव होता है ठीक वैसे जब कोई छोड़ के चला जाता है वैसे ही। दिल बैठने लगता है वो दृश्य जब भी ध्यान में आता है । विदाई के बाद जब दोनों भाई गले मिलते है उस समय का वार्तालाप भी रुलाते हुए रिश्तें की गंभीरता और आवश्यकता को दिखा देता है। अंतिम दृश्य तो अधिक दुःख के साथ थोड़ा बहुत सुख की अनुभूति भी करा जाता है जब मुख्य किरदार पंछियो जैसे उडने के सपने को अनुभव करना शुरू करता है और एक बहुत ऊँचे पहाड़ी पर से कूद कर उस अनुभव को पाने के क्रम में अपनी जान दे देता है। इससे यहीं समझने में मदद मिलता है कि अपना निजी अनुभव बहुत जरुरी है उसके लिए किसी हद तक गुजरा जा सकता है । बहुत दिनों बाद अपना पौने दो घंटे जाया करने का निर्णय लिया जो शायद सबसे अच्छे पौने दो घंटे थे, और भी बहुत कुछ है सीखने लायक है फिल्म में जो शब्दों के माध्यम से बता पाना थोड़ा मुश्किल है|
A boy was watching his grandmother write a letter. At one point he asked: ‘Are you writing a story about what we’ve done? Is it a story about me?’ His grandmother stopped writing her letter and said to his grandson: I am writing about you, actually, but more important than the words is the pencil I’m using. I hope you will be like this pencil when you grow up.’ Intrigued, the boy looked at the pencil. It didn’t seem very special. ‘But it’s just like any other pencil I’ve ever seen!’ ‘That depends on how you look at things. It has five qualities which, if you manage to hang on them, will make you a person who is always at peace with the world.’ ‘ First Quality : you are capable of great things, but you must never forget that there is a hand guiding your steps. We call that hand God and He always guides us according to his will .’ ‘ Second Quality : now and then i hav to stop writing and use a s...