'माँ' शब्द का उच्चारण करना ही अपने आप में शक्ति का संचार करने के लिए पर्याप्त होता है। जब कभी मैं घर जाता हूँ तो 'माँ' को कई कई बार अपने आप में खोए हुए पाता हूँ शायद अंतस में गहराई से कुछ सोच रही होती है। उसी क्षण में उनके इस अवस्था से बाहर निकालने के लिए कुछ बातें करने लगता हूँ मुझे अच्छा नहीं लगता कि कोई भविष्य की चिंता करे। मुझे ऐसा लगता है कि जब 'माँ' शांत भी होती है तब भी लाखों बातें 'माँ' के मस्तिष्क में घुमड़ती रहती है ।मैं चाहे कहीं रहूं पर माँ- पापा से दिन में एक बार बात हो ही जाती है, कभी कभी पता नहीं क्यों इस रोज के प्रश्नों से (खाना खा लिए?, क्या खाएं?,ठीक हो ना?,घर कब आना है? और तमाम प्रश्न) उबन के कारण गुस्सा आता है, पर अब तो आदत बन चुकी है, शाम के आठ बजते ही या तो उधर से कॉल आ जाता है और यदि नहीं आये तो थोड़े घबराहट के साथ मैं ही कॉल कर लेता हूँ । अब ये आदत नहीं छूटने वाली....क्योंकि ये लत का रूप ले चुकी है । बिना माँ के स्थिति को तो सोचते ही दिमाग और दिल में ज्वालामुखी फूटने लगती है।मैंने प्रण किया है कि चाहे जो हो जाएं अपने मार्तभूमि को नहीं छोड़ना है, चाहे इस जीने की संघर्ष मुझे कहीं लेके जाएँ पर अपने घर को छोड़ कहीं और अपना स्थाई ठिकाना नहीं बनाना है। हमारी माँ शुरू से गाँव में ही रही हैं पर उन्होंने हमें हमेशा रूढ़िवादिता और ढोंग से कोसों दूर रखा हैं, अगर हमनें अपने जीवन में जो कुछ भी सिद्धान्त-व्यवहार बना रखा है तो उसमें सर्वोच्च योगदान माँ और मेरी दीदी ( दीदी के साथ सम्बन्ध भले ही भाई-बहन का हो, पर मेरे प्रति उनका व्यवहार देख कर लगता रहता है कि पिछले किसी जन्मों में वो मेरी माँ रही होंगी ) का ही है। हमारे घर में किसे क्या पसंद है क्या नहीं माँ से ज्यादा और कौन जान सकता है ।अचानक से चोट लग जाए या कोई परेशानी खड़ी हो तो ज्यादातर (भोजपुरिया) लोग 'अरे माई हो' ही कहते है इसे कहने से अंग्रेजी पेन किलर से भी तेज राहत मिलता है । बेटे दिन प्रतिदिन बदलते जा रहे है कोई बेटा माँ को अमेरिका ले जाने के बहाने घर-द्वार बेच कर एयरपोर्ट पर छोड़ के निकल लेता है तो कोई वृद्धाआश्रम का रास्ता दिखा देता है इसके बावजूद पीढियां दर पीढियां के बड़े बदलावों नें माँ के पहनावे और उनमें आउटलुक को तो बदल दिया है , पर 'ममत्व' तो वैसा ही सरल, सहज और सपाट है। भूख लगने पर माँ की दौड़ वैसी ही है जैसी कल थी ।
माँ, वह विशाल वटवृक्ष है जिसकी छाँव में बैठ हर पहेली चुटकियों में सुलझ जाती है....। एक ऐसा सपोर्ट सिस्टम जो अडिग है, जो हर हाल में बच्चों के साथ है। अगर माँ बीमार भी रहे तो उसकी चिंता में उसका अपना स्वास्थ्य का ख्याल छोड़ कर बाकी सबका ध्यान रहता है। 'माँऐ' पता नहीं किस मिटटी से बन के आती है कि जीवनपर्यन्त अपने बच्चों के लिए ढाल बने खड़े रह जाती है वहीँ उनके बच्चे थोड़े में हार कर ही बहुत ही नृशंस और कठोर कदम उठाकर माँ को अपने से जुदा कर लेते है और 'माँ' को छोड़ जाते है बाकी बचे जीवन में घोर दुःख और संताप में ,वे तथाकथित सुपुत्र यें क्यों नहीं सोच पाते की यदि उनके माँ-बाप ने बचपन में ही घर से निकाल दिया होता तो उनकी स्थिति क्या होती ? ऐसा इस लिए की उन्हें लगता है ये तो सब माँ-बाप करते है ,उनका कर्तव्य है ये, तो क्या आपका कर्तव्य केवल इतना है कि जीवन के इन 'तुक्ष' समस्याओं से घबरा कर देवी जैसी माँ को रोने पर मजबूर करे |
आइये हम सब संकल्प ले की चाहे जीवन में जितनी मुसीबतें आये सभी मुश्किलों का सामना पुरे परिवार के साथ खड़े हो कर करेंगे , इन मुश्किलों में घबराएंगे नहीं । आज के आर्थिक प्रतियोगी दौर में इस पर विचार करना निहायत जरुरी है। हमारी हर सफलता और विफलता में सामान रूप से चट्टान जैसे खड़ी रहने वाली हर माँ को मेरा प्रणाम ,उनकी उपस्थिति मात्र ही रूह को संतृप्त करती है, हमारी हर छोटी-बड़ी उपलब्धि में किसी न किसी रूप में माँ का अंश जरूर है। लोग अपने बच्चों को कहीं भी पढ़ा ले पर यदि वो बच्चा अपने माँ से कुछ नहीं सीख पाया तो कोई भी सीख अस्थाई ही होगी, माँ अपने बच्चों की सर्वोत्तम ट्रेनिंग अकादमी है, जहाँ से उसके बच्चे अच्छे नागरिक, प्रखर पेशेवर, परफेक्ट जीवनसाथी और संतुष्ट व्यक्ति बन पाते हैं । क्षण भर पास बैठ जाइये तो सदियों की दौलत उड़ेल देती हैं ....."अरे हमार सुगा" कहती है हमारी माँ जब कभी मुझे उदास या मुरझाई हुई देख लें । दुनिया के हर थर्मामीटर को धता बता मन के ताप को नाप गहरी शीतलता देती है माँ । आप मुझे इस दुनिया में लेके आईं इस काबिल बनाया की इस क्रूर संसार में रह कर भी अपने इंसानियत को बचा पाऊं, मेहनत करना सिखाया लोगों से बात करना सिखाया । दिल से साफ़ रहना और विषम परिस्थितियों में भी हौसला बनाये रखने से लेकर बाकी सब कुछ आपकी ही देन है आपके बारे में मैं जितना लिख लूँ हमेशा कम ही रहेगा, क्योंकि माँ आप ना मेरे लिए बहुत स्पेशल हो, आपलोगों की ममता अनमोल है, आपको दुनिया का आठवां आश्चर्य कहा जाएँ तो गलत नहीं होगा। आपके सामने दुनिया की हर दौलत फीकी है नगण्य है। हर दिन मदर्स डे है, उन्हें स्पेशल फील कराने का मौका कभी न छोड़ें।