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भावना का सम्बन्ध

जब सामने वाला व्यक्ति अपने दिल या मन की बात कहने के उधेड़ बुन या कश्मकश में फंसा हो तभी आप उसे शर्मिंदा ना करते हुए और एहसान ना जताते हुए उसके हित और सुख के लिए अपने सुख दुख की परवाह ना करके कोई कदम उठाते है तो कहा जाना चाहिए की ये दोनों व्यक्तियों में भावना का सम्बन्ध प्रबल है. इसमें एक दूसरे को पूर्णतः समझने की बात होती है. यह सम्बन्ध उसी के साथ विकसित हो सकता है जिसके साथ आपका बचपन ,जवान हुआ हो. ऐसा इसलिए क्योंकि यही वह दौर होता है जब भावनाये एक दूसरे में स्वछंद और उन्मुक्त रूप से बटां करती है. इस स्थिति में व्यक्ति को अपने सुख-दुख की परवाह जितनी नहीं होती उतना सामने वाले के लिए होता है . कालिदास और मल्लिका के सम्बन्ध ऐसे ही रहे है.मोहन राकेश द्वारा लिखे गए नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' में लेखक ने उस सम्बन्ध को बहुत अच्छे से उकेरा है, उकेरा ही नहीं है बल्कि अपने पाठकों के लिए जिवंत बना दिया है। मल्लिका कहती भी है - 

"मैंने भावना में एक भावना का वरण किया है। मेरे लिए वह सम्बन्ध और सब सम्बन्धों से बड़ा है। मैं वास्तव में अपनी भावना से प्रेम करती हूँ जो पवित्र है, कोमल है, अनश्वर है...।"

कैसे मल्लिका अपने बचपन के साथी, जिससे अगाढ़ प्रेम भी करती है कालिदास को उज्जयनी के राजदरबार में भेजती है ताकि कालिदास को वो मान सम्मान मिल सके जो यहां मिल न सका. यहाँ आकर कालिदास को राजकवि का सम्मान तो मिलता ही है और राजा अपने विद्युषी पुत्री से कालिदास का विवाह भी रचा देते है. इधर मल्लिका इन्तजार में रहती है पर जब कालिदास आते है तो विवाह की खबर के साथ और खुद मल्लिका से न मिल कर अपनी पत्नी को भेज देते है. फिर भी मल्लिका उनके बारे में बुरा-भला नहीं सुनती, यहाँ तक की उनके अच्छाई के लिए प्रार्थना करती रहती है ।
 कालिदास को इतना अधिक चाहते हुए भी मल्लिका ने कभी भी अपने आप को कालिदास और उनकी उपलब्धियों के बीच में नहीं आने दिया। हालांकि मन में हमेशा एक शक्तिशाली इच्छा बनी रही जैसा की यहाँ देखा जा सकता है - 
".....सोचती थी तुम्हें 'मेघदूत' की पंक्तियाँ गा-गाकर सुनाऊँगी। पर्वत-शिखर से घण्टा-ध्वनियाँ गूँज उठेंगी और मैं अपनी यह भेंट तुम्हारे हाथों में रख दूँगी....... कहूँगी कि देखो, ये तुम्हारी नई रचना के लिए हैं। ये कोरे पृष्ठ मैंने अपने हाथों से बनाकर सिये हैं। इन पर तुम जब जो भी लिखोगे, उसमें मुझे अनुभव होगा कि मैं भी कहीं हूँ, मेरा भी कुछ है।"

नाटक के संवाद बहुत शक्तिशाली हैं ।
बहुत अच्छी नाटक है इसे जरूर पढ़ा जाना चाहिए ।

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