मैं मानुष हूँ या अमानुष,
लोगों से डरता हूँ,
भावनाओं से डरता हूँ,
मिल के बिछड़ जाने से डरता हूँ,
डरता हूँ किसी को खो देने से,
लोगों से डरता हूँ,
भावनाओं से डरता हूँ,
मिल के बिछड़ जाने से डरता हूँ,
डरता हूँ किसी को खो देने से,
मेरा अब तक का इतिहास रहा,
जो दूर रहा, वो अपना रहा,
जो पास रहा, वो दूर रहा,
शायद मैं मानुष ना रहा,
जो दूर रहा, वो अपना रहा,
जो पास रहा, वो दूर रहा,
शायद मैं मानुष ना रहा,
अभी तक प्रयास रहा, ना आ पाये कोई मेरे अंदर तक,
ना समझा, ना समझने ही दिया,
ना याद बना, ना बनने दिया,
शायद मैं अमानुष ही रहा,
ना समझा, ना समझने ही दिया,
ना याद बना, ना बनने दिया,
शायद मैं अमानुष ही रहा,
जिनका केवल दीदार किया, वर्षों तक उनकी याद रहीं,
जिनसे मैंने इकरार किया, उनकी यादें भी नहीं,
मैं कौन हूँ जो मानुष भी नहीं, अमानुष भी नहीं,
शायद इन दोनों के बीच एक उलझा सा पागल हूँ ।
जिनसे मैंने इकरार किया, उनकी यादें भी नहीं,
मैं कौन हूँ जो मानुष भी नहीं, अमानुष भी नहीं,
शायद इन दोनों के बीच एक उलझा सा पागल हूँ ।
हाँ मैं पागल ही हूँ ☺️.....पगलेट कवि !! Follow