मैं कुछ जानता ही नहीं,
क्या होता हैं टूटकर चाहना,
क्या होता है चाँद तोड़ लाना,
क्या होता है किसी के लिए जगना, रोना , हँसना
मैं कुछ जानता ही नहीं,
शायद डरपोक हूँ, कमजोर हूँ या नासमझ हूँ,
जानते हुए भी अपने आप से डरता हूँ ,
डर जाता हूँ किसी से प्यार हो जाने से,
डर जाता हूँ उसके बाद के जूनून से,
उसके बाद के सुकून को
मैं कुछ जानता ही नहीं,
पकडे-जकड़े बैठा हूँ अपने दिल को ज़माने से,
की कोई एक ऐसा होगा, जिसे सुकून से सौंप पाऊंगा,
एक अनजाने से डर ने रोक रखा हैं अब तक !