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झाँसी की रानी और आज का महिला सशक्तिकरण

                                                     JHANSI KI RAANI
                                              आज झाँसी की रानी, लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर मैं उन वीरांगनाओ को शत-शत नमन करता हूँ, जिन्होने अपना बलिदान देकर देश की संस्कृति और अखंडता की रक्षा की . झाँसी की रानी आज के आधुनिक दौर के महिलाओ के लिए महिला सशक्तिकरण के लिए रोल मॉडेल हो सकती है और उन्हे उनकी बहादुरी और  साहस के लिए हमेशा याद रखा जाएगा.झाँसी की रानी का जन्म उत्तर प्रदेश के काशी मे 19 नवेंबर 1835को हुआ था जिसे अब वाराणसी कहा जाता है,  और इनके जन्म का नाम मणीकर्णिका था जिसे सब प्यार से 'मनु' कह कर बुलाया करते थे . इन्होने मात्र 23 वर्ष की आयु मे 18 जून 1858 को यानी आज के ही दिन ग्वालियर में अंग्रेज़ो से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की, किंतु जीते जी अंग्रेज़ो को अपने झाँसी पर कब्जा नही करने दिया था. इनकी माता जी का नाम भागीरथी बाई तथा पिता श्री का नाम मोरोपंत तांबे था, जो मराठी थे. सही ही कहा जाता है की सोना आग में टापकर ही कुंदन बनता है, ठीक वैसे ही मणीकर्णिका जो आज मनु कहलाती थी जब मात्र 4 वर्ष की थी तभी उन की सुसंस्कृतिक, बुद्धिमान और धार्मिक माता जी स्वर्ग सिधार गई. उसके बाद इनके लालन पालन के लिए घर मे तो कोई था नही तो इनके पिता श्री अपने साथ ही इन्हे बाजीराव ii के राजदरबार में ले जाते थे जहाँ चंचल और सुंदर मनु सबका मन मोह लेती.लोग इन्हे प्यार से ' छबिली' बुलाते थे, मनु ने शास्त्रो और शस्त्रो की शिक्षा बचपन मे ही प्राप्त कर ली थी. सन 1842 में उनका विवाह राजा गंगाधर राव से हुआ और इस तरह मणीकर्णिका अब लक्ष्मीबाई बनकर झाँसी की रानी बनी. लक्ष्मीबाई का अपना पुत्र 4 महीने के अल्पायु मे मर गया तो उन दोनो ने दामोदर राव के रूप में एक बालक को गोद लिया . इस दौरान उनके पति की मृत्यु हो गई और ब्रिटिश सरकार का governer general उस समय लॉर्ड डलहौज़ी था. ब्रिटिश सरकार इनके दतक पुत्र को झाँसी का उतराधिकारी नही मानती थी. लॉर्ड डलहौज़ी ने झाँसी के किले को sieze करने का आदेश दिया, तब लक्ष्मीबाई ने किसी अंग्रेज वकील से सुझाव लेकर london कोर्ट में अपील की, पर वहाँ उनकी अपील खारिज कर दी गई और उन्हे कहा गया की आप किला छोड़ कर रानी महल में रहे  और 60000 का मासिक pension भी लें पर हमारी रानी तो रानी ही थी नहीं गई. उन्होने अपनी झाँसी को बचाने के लिए इसके सुरक्षा और सैनिकों को दुरुस्त करने का काम किया. इसके लिए उन्होने महिलाओ को भी मिलिट्री ट्रैनिंग देनी शुरू कर दी. रानी के सेना में गुलाम ग़ौस ख़ाँ, दोस्त ख़ाँ, दीवान रघुनाथ सिंह आदि प्रमुख थे. जब 23 मार्च 1858 को सिर ह्यू रोज़ के नेतृत्व में ब्रिटिश आर्मी किले को seize करने आई तो रानी ने सेरेंडर करने से मना कर दिया और शान की लड़ाई लड़नी पसंद की जो दो सप्ताह तक चली. रानी की सहायता के लिए तात्या टोपे भी 20000 सैनिको की फौज लेकर आए पर उन well-trained ब्रिटिश आर्मी के 1540 सैनिकों के सामने न टिक पाए और जब अगले दिन ब्रिटिश सरकार किले को seize करने वाली ही थी की उसी रात रानी लक्ष्मीबाई अपने विशेष महिला सहयोगियों के साथ किले के प्राचीर से कूद कर ग्वालियर पहुच कर अंग्रेज़ो पर धावा बोल दिया और 18 जून 1858 को लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त की. ग्वालियर लड़ाई के रिपोर्ट में सिर ह्यू रोज़ ने लिखा है,"  Remarkable for her beauty, brain and preserverance. Had been the most dangerous of all the rebel leaders." 
                                      

                                                   JHANSI FORT


                                                      TATYA TOPE
                                          मुझे आज ऐसा लगता है की उन वीरांगनाओ के समय तो कहीं महिला सशक्तिकरण का नामों निशान नही था, फिर भी वे इतना सशक्त की अंग्रेज़ो के बड़े से बड़े टुकड़ी का सामना ही ना कर सके बल्कि उन्हे पीछे भागने पर मजबूर कर दे और एक आज की लड़कियाँ है किसी लड़के ने थोड़ा सा छेड़ क्या दिया डर गई अरे ! लगाओं वही उसको 4 चप्पल सब लोगों के सामने तब ना वो लोग सबक सीखेंगे. आज के दौर में चारो ओर youtube हो या facebook या हो twitter चारों ओर महिला सशक्तिकरण का # hashtag ही दिख रहा है पर उन बालाओं को आज का समाज इज़्ज़त और शान से जीने नही दे रहा है. आज ऐसा दौर है की अगर लड़के ने कुछ ग़लत किया तो घरवालें कहते है की लड़का फ्रैंक हो गया और लड़की ने किया तो बिगड़ गई. आख़िर हमारे समाज की दो आँखे क्यूँ ??? उन्हे पता नही कैसे लगता है की लड़की ने अगर अपने मन की,  की तो समाज में उनका नाक कट जाएगा. अरे! भैया कितना बड़ा हो गया है आपलोगो का नाक ? और जब यहीं झूठे शान में अंधे लोग चाहे ये बूढ़े ही क्यूँ ना हो जब किसी नाच गाने या हमारे यहाँ के देशी ऑर्केस्ट्रा में जाते है तो अपनी बुढ़ापे का ख्याल नही करते हुए इन अर्धनग्न लड़कियों को कामुक तरीके से नाचते हुए देख देख कर रोमांचित होते है और उन बेचारी लड़कियों को तो कुछ बिगड़ैल युवा गंदे गंदे इशारे भी करते हैं. मैं नही समझ पाता हूँ ये समाज के दो चेहरे को और उनके मनोविचारों को की वो चाहते क्या है ?? हर एक लड़की के लिए तो एक मानसिकता एक होनी चाहिए को वो लड़की इज़्ज़त और शान से जीने की संवैधानिक अधिकार का प्रयोग कर सकें पर इनका हर एक लड़की के लिए अलग अलग सोच होता है. घर की है तो इज़्ज़तदो वरना इज़्ज़त लो. ये सब बातें मैं अपने अनुभव के आधार पर लिख रहा हूँ . मेरा ये मानना है की आज के दौर में तो झाँसी की रानी से ज़्यादा सशक्त महिलाए होनी चाहिए क्यूंकी सब उसके पक्ष में है- सरकार की नीतियाँ, hashtag, फ़ेसबुक, ट्विटर और तमाम संस्थाएँ और NGO . पर ऐसा क्या है जो झाँसी की रानी को जन्म नही लेने दे रहा है तो वो है उस लड़की का भाई, बाप, दोस्त, रिश्तेदार यानी कहने का मतलब की उसको ये हमारी (मेन्स) सता और कुछ अपने को मनुष्य समझने वाले जानवर लोगों की गंदी और घृणित मानसिकता ही ज़िम्मेदार है. 15 august 2014 को हमारे माननीय PM साहब ने कहा था की ," हम भारतीय लोग केवल लड़कियो को क्यूँ बोलते रहते है की ऐसे कपड़े पहनो, ऐसे रहो, ज़्यादा हँसो मत आदि आदि पर हम कभी अपने लड़को को क्यों नही बोलते की तुम हर एक लड़की अपने माता और बहन जैसे सम्मान और इज़्ज़त दो. जिस दिन हमने ऐसा करना शुरू कर दिया तो समझ जाइएगा की हमारे पास झाँसी की रानी लाखों हो जाएँगी .
                                               

     (जंपिंग पॉइंट, जहाँ से माना जाता है की रानी रात मे अपने सहयोगियों के साथ कूद कर ग्वालियर गई थी)
                                               झाँसी की रानी अपने बहादुरी, साहस और बुद्धिमानी, अपने महिला सशक्तिकरण के आधुनिक सोच के वजह से और अपने बलिदान के वजह से 19वीं सदी में भारतीय स्वतंत्रता की एक मिशाल और आज महिला सशक्तिकरण की रोल मॉडेल बन गई है. उनके बहादुरी के किस्से को सुभद्रा कुमारी चौहान ने एक वीर रस के कविता के रूप में रच डाला जिसे हम सबने अपने प्रारंभिक पढ़ाई के समय ज़रूर पढ़ा होगा. हमारे रामकृष्णा परमहंस स्कूल में एक दूबे सर के माध्यम से इस कविता का रस समझने का मौका मिला था पर मैं भोला भाला बालक उस समय इसके मर्म को नही समझ पाया था, अब जब इस कविता के पंक्तियो को पढ़ते वक़्त मेरी भुजाएँ फड़कने लगती है तब इस कविता का मर्म समझ मे आता है. 
                          JHANSI KI RAANI

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।                             

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