एक मशीनअमेरिका की ऑरेंज काउंटी ऑफिस के पार्क में स्थित एक सफेद इमारत में लगी है। यह एक फ्यूजन रिएक्टर का प्रोटोटाइप है। यह ट्राई अल्फा एनर्जी नामक गुप्त कंपनी का एकमात्र प्रोडक्ट है। और जब यह एवं इसके जैसी अन्य मशीनंे काम करने लगेंगी तब दुनिया को ऐसे बदल देंगी जैसा पिछली शताब्दी में किसी अन्य टेक्नोलॉजी ने नहीं बदला होगा।
यह विश्व का अकेला फ्यूजन रिएक्टर नहीं है। दुनिया भर में लगभग एक दर्जन फ्यूजन रिएक्टर निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें से अधिकतर का निर्माण विश्वविद्यालयों, बड़े कार्पोरेशनों और सरकारों द्वारा किया जा रहा है। सबसे बड़े इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीइआर) पर दक्षिण फ्रांस में काम चल रहा है। एक इंटरनेशनल कंसोर्टियम द्वारा निर्माणाधीन रिएक्टर पर 1200 अरब रुपए से अधिक लागत आएगी। प्रोजेक्ट को वर्ष 2027 में पूरा करने का लक्ष्य है। फ्यूजन रिसर्च बहुत बड़े पैमाने पर समय, धन और साइंटिस्ट के करिअर को खपाने लेकिन कोई ठोस परिणाम ना देने के लिए कुख्यात रही है।
पिछले दस वर्षों में स्थिति बदली है। हाई टेक अर्थव्यवस्था को चलाने वाली नई कंपनियों (स्टार्टअप्स) ने फ्यूजन की समस्याओं को हाथ में लिया है। इन कंपनियों में खतरा उठाने वाले इन्वेस्टर धन लगा रहे हैं। वैंकूवर, कनाडा की जनरल फ्यूजन, रेडमंड वाशिंगटन स्थित हेलिअन एनर्जी जैसी कई कंपनियों के बारे में लोगों ने कभी नहीं सुना है। कुछ माह पहले तक तो ट्राई अल्फा की वेबसाइट नहीं थी। अलबत्ता, इनमें पैसा लगाने वाले लोग जरुर जाने-माने हैं - बेजोस एक्सपेडिशंस, मिथ्रिल कैपिटल मैनेजमेंट (पेपाल के सहसंस्थापक पीटर थिएल), वल्कन (माइक्रोसॉफ्ट के सहसंस्थापक पाल एलन), गोल्डमैन सॉक्स।
निजी फ्यूजन कंपनियों में संभवत: ट्राई अल्फा ने सबसे अधिक धन जुटाया है। फिर भी, यह सरकार समर्थित प्रोजेक्ट की तुलना में बहुत कम है। फ्यूजन पर वर्षों से काम चल रहा है। इसकी थ्योरी 1920 में सामने आई थी। धरती पर फ्यूजन एनर्जी पैदा करने के गंभीर प्रयास 1940 से चल रहे हैं। 50 वर्ष पहले फ्यूजन टेक्नोलॉजी को दुनिया बचाने वाली टेक्नोलॉजी के रूप में पेश किया गया था। ट्राई अल्फा के संस्थापकों में एक माइकेल बिंडरबाउर का कहना है, फ्यूजन को जिस तरह से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, वह खतरनाक है।
फ्यूजन (विलय) को न्यूक्लियर फिजन (परमाणु विखंडन) से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन, ये दोनों अलग हैं। न्यूक्लियर फिजन में यूरेनियम - 235 जैसे बड़े एटम को छोटे एटम में विभाजित करते हैं। इससे काफी ऊर्जा पेैदा होती है। परमाणु बिजली के साथ समस्याएं भी जुड़ी हैं। यूरेनियम दुर्लभ खनिज है। परमाणु रिएक्टर का निर्माण बेहद खर्चीला है। उनसे खतरा भी है। थ्री माइल आइलैंड, चेर्नोबिल, फुकुशिमा जैसी दुर्घटनाएं इसके प्रमाण हैं। परमाणु संयंत्रों का कचरा जहरीला रहता है। वह सैकड़ों वर्षों तक खतरनाक रेडिएशन फैलाता है।
न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया न्यूक्लियर फिजन से उलटी है। इसमें परमाणुओं को विखंडित करने की बजाय छोटे परमाणुओं को मिलाकर उन्हें बड़ा बनाते हैं। इससे बहुत ज्यादा एनर्जी पैदा होती है। फ्यूजन प्रक्रिया को हम रोज घटित होते देखते हैं। इसका परिणाम सूर्य का प्रकाश है। सूर्य एक विराट रिएक्टर है। लगातार हाइड्रोजन नाभिकों को भारी तत्वों में बदलता है और बाई प्रोडक्ट के रूप में हमें सूर्य का प्रकाश भेजता है।
फ्यूजन की प्रक्रिया न्यूक्लियर फिजन से तीन-चार गुना अधिक बिजली पैदा करती है। इसका ईंधन जहरीला या दुर्लभ या जीवाश्म- जैसे कोयला- नहीं है। फ्यूजन हाइड्रोजन जैसे सामान्य तत्व से चलता है। दुनिया में इसका अपार भंडार है। गड़बड़ी की स्थिति में फ्यूजन रिएक्टर पिघलते नहीं हैं। वे बंद हो जाते हैं। उनसे रेडियो एक्टिव कचरा पैदा नहीं होता है। प्रदूषण नहीं फैलता। फ्यूजन का बाई प्रोडक्ट हीलियम गैस है। हम इसका उपयोग गुब्बारे फुलाने में कर सकते हैं। फ्यूजन के इतिहास पर अपनी किताब में डेनियल क्लेी ने इसकी तुलना परंपरागत बिजली से की है। कोयले से चलने वाले बड़े बिजलीघर के लिए प्रतिदिन दस हजार टन कोयले की जरूरत पड़ती है। इसकी तुलना में लैपटॉप की एक बैटरी के लिथियम और 45 लीटर पानी से निकले ड्यूटेरियम से फ्यूजन के जरिये ब्रिटेन की 30 वर्ष जरूरत की बिजली पैदा की जा सकती है।
फ्यूजन के साथ मुश्किल यह है कि परमाणु नाभिक विलीन नहीं होना चाहते हैं। वे प्रोटांस और न्यूट्रांस से बने होते हैं। उनमें इतनी ऊर्जा होती है कि वे एक-दूसरे से दूर भागते हैं। परमाणुओं का मेल कराने के लिए उन्हें इतना गर्म करना पड़ता है कि वे अपने इलेक्ट्रान छोड़कर प्लाज्मा में बदल जाएं। यदि प्लाज्मा को बहुत गर्म किया जाए तो कुछ नाभिक एक दूसरे से टकराकर मिल जाते हैं। इस प्रक्रिया को करने के लिए सूर्य के हृदय जैसी परिस्थितियों का निर्माण जरूरी है। सूर्य धरती से तीन लाख 30000 गुना बड़ा है। वहां तापमान एक करोड़ 70 लाख डिग्री सेल्सियस रहता है। यह पहली समस्या है। दूसरी समस्या प्लाज्मा रूपी ईंधन है। प्लाज्मा ना द्रव, ना ठोस, ना गैस के आकार का है। यह पदार्थ की चौथी अवस्था है। तापमान और दबाव में प्लाज्मा बहुत अधिक अस्थिर हो जाता है।
प्लाज्मा को चुंबक के जरिये नियंत्रित कर फ्यूजन कराने की विधि सबसे अधिक सामान्य है। धातु से बने खोखले टोकामेक डिवाइस से प्लाज्मा को नियंत्रित करते हैं। 1980 में अमेरिका, जापान, इंग्लैंड में बड़े टोकामेक बनाए गए। इनके वारिस सबसे बड़े टोकामेक फ्रांस के मार्सेल्श शहर के बाहर आईटीइआर में बनाए जा रहे हैं। ये 30 मीटर ऊंचे और 30000 टन वजनी होंगे। इनके मेगनेट के लिए एक लाख किलोमीटर निओबियम टिन वायर की जरूरत पड़ेगी। इस प्रोजेक्ट का खर्च अमेरिका, रूस, यूरोपीय यूनियन, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और भारत के ग्लोबल कंसोर्टियम द्वारा उठाया जा रहा है। प्रोजेक्ट के पूरा होने का समय 2016 से बढ़ाकर 2027 कर दिया गया है। इसकी लागत 320 अरब रुपए से बढ़कर 1300 अरब रुपए हो गई है।
फ्यूजन इंडस्ट्री में हर किसी को विश्वास है कि फ्यूजन बिजली से दुनिया की तस्वीर बदल जाएगी। ट्राई अल्फा के बिंडरबाउर का कहना है, हम दस वर्ष में फ्यूजन से बिजली पैदा करने वाला कॉमर्शियल रिएक्टर बना सकते हैं। प्रिन्सटन लेबोरेटरी के प्रमुख इवन प्रेगर कहते हैं, ऐसा होना तय हैै। लेकिन, दस वर्ष में संभव नहीं हो सकेगा। वर्ष 2040 तक फ्यूजन से कॉमर्शियल बिजली मिल सकती है।
आगे क्या...
ट्राईअल्फा की अगली मशीन अधिक बड़ी और शक्तिशाली होगी। आशा है, इसमें प्लाज्मा ऊंचे तापमान पर अधिक समय तक बना रहेगा। उपयोग लायक बिजली पैदा करने के लिए प्लाज्मा यानी ईंधन को तीन अरब डिग्री सेल्सियस के तापमान तक गर्म करना होगा।
फिजन विरुद्ध फ्यूजन
फिजन-किसीएटम (अणु) के केन्द्र को छोटे टुकड़ों में विभाजित करने की प्रक्रिया है। इससे अपार एनर्जी और रेडिएशन पैदा होता है।
फ्यूजन-यह एटम के केन्द्र का विलय है। यह प्रक्रिया सितारों के अंदर होती है। भीषण गर्मी और उससे पैदा हुई प्रतिक्रिया को सहेजना बहुत कठिन है इसलिए धरती पर इसे करना अत्यंत मुश्किल है।
4 अल्फा मशीन एक करोड़ दस लाख डिग्री तापमान पर प्लाज्मा को पांच मिली सेकंड तक बनाए रखती है।
3 प्लाज्मा के किनारों के आसपास बीम के जरिये कण भेजतेे हंैं ताकि वह स्थिर बना रहे।
2 मुख्य चैम्बर में बादलों की भिड़ंत से गर्मी पैदा होती है। प्लाज्मा कंपाउंड और अधिक गर्म होते हैं।
1 मशीन के हर ओर से कैनन (तोपें) दस लाख किमी प्रति घंटा की गति से प्लाज्मा बादल फायर करती हैं।
कैसे काम करती है फ्यूजन की प्रक्रिया
ट्राईअल्फा मशीन ने एटम के विलय को आकार देने वाले प्लाज्मा सूप को स्थिर रखने की फ्यूजन एनर्जी की सबसे बड़ी बाधा को तोड़ दिया है।
Rakesh had scored a magnificent 284 out of 500 in Public Administration, this year. He has been kind enough to share his strategy for Public Administration for the benefit of future aspirants and I thank him on their behalf. Following is his strategy in his own words. My basic profile Name: RAKESH CHINTAGUMPULA Rank: AIR 122, UPSC-2014 Education Qualification: B.Tech (EEE) from CBIT, Osmania University; M.A. (Public Administration), IGNOU Job Experience: Worked for 2 yrs in Infosys Tech Ltd. as software engineer and 2.5 years as a lecturer in IAS academy, Hyderabad I had given 3 mains with Public Administration as optional scoring 330/600, 335/600 and 284/500 marks. My Marks Prelims Paper I: 118 Paper II: 155.83 Total: 274 Mains ROLL NO. : 115513 NAME : CHINTAGUMPULA RAKESH MARKS OBTAINED SUBJECTS MARKS ESSAY (PAPER-I) 096 GENRAL STUDIES -I (PAPER-II) 109 GENRAL STUDIES -II (PAPER-III) 107 GENRAL STUDIES -III (PAPER-IV)...